हापुड़ का संक्षिप्त इतिहास |
हापुड़ नगर को राजा हरि सिंह ने हरिपुरा नाम से सन 983 ई0 मे बसाया था। कुछ समय बाद हरिपुरा का नाम बिगड़कर हापुड़ हो गया था। यह नगर पूरे भारतवर्ष मे मशहूर है। हर संग्राम और आन्दोलन मे यहां के लोगो ने बढ-चढकर भाग लिया यहां हर वर्ग के लोग सामान्य क्षे़त्र में सक्रिय रहे है।
सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई में पूरे उत्साह से भाग लिया जिसमे अनेक लोग शहीद हुए इसी लड़ाई में 14 सितम्बर को मौ. भन्डा पटटी निवासी जबरदस्त खां एवं उनके भाई चै0 उल्फत खां को रामलीला मैदान के बाहर पीपल के पेड़ से लटकाकर फांसी के द्वारा शहीद कर दिया। यह दोनो त्यागी मुसलमान थे तथा इनके वंशज हिन्दुओं मे वीरेन्द्र त्यागी (दरोगा जी) तथा मुसलिम परिवार के वंशज आज भी मौ. भण्डा पटटी में रह रहे है तथा देशपेेम की भावना से ओतप्रोत सामाजिक कार्यों में अग्रसर रहते हैं इनमे मुक्ष्य रूप से चै0 जबरदस्त खां के प्रपौत्र श्री फसीह चैधरी(बन्दूक वाले) व डा0 मरगू त्यागी हैं। सन 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिन्दु मुसलमानों ने एकजुट होकर हिस्सा लिया। गांधी जी के आहवान पर गांधी गंज में विदेशी वस्तुओं की होली जलायी गयी थी। जिसके कारण 11 अगस्त को टाउनहाल पार्क में 4 आन्दोलनकारी श्री मांगे लाल, श्री रामस्वरूप, श्री गिरधरलाल व आगनलाल अग्रेंजो की गोलियों से शहीद हो गये। नगर के अतरपुरा पुलिस चैकी पर आज भी उन गोलियों के निशान मौजूद हैं जो शहीदों के खून की याद दिलाते रहेंगे। इसी आन्दोलन में अनेक व्यक्ति घायल हुए थें तथा जिन्हें जेल में डाल दिया गया उनमें मुख्य रूप से स्वतन्त्रता सेनानी अमोलक चन्द मिततल, बाबू सरजू प्रसाद एवं श्री कैलाशचन्द मिततल अपनी बहादुरी की दास्तां सुनाने के लिए हमारे बीच मौजूद हैं कैलाश चन्द मिततल साहब बीस वर्षो तक ”स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी परिषद“ के अध्यक्ष रहे। उनके साथ खलीफा मन्जूर हसन स्वतन्त्रता सैनानी रहे और देश की आजादी के लिए हापुड़ में बड़ी बड़ी महान हस्तियां कुर्बान हुई हैं। जिनमें से एक नाम पूरी दुनिया में मशहूर है। मौलाना अब्दुल हक जिन्हें ”बाबए उर्दू“ कहते हैं। अमरीका में उनकी जो स्मारिका है उस स्मारिका में भी उनके नाम के आगे हापुड़ वाले लिखा है। इसी श्रंखला में सेठ बाबू लक्ष्मी नारायण, शान्ति स्वरूप अग्रवाल , चैधरी रघुवीर नारायण त्यागी, हाजी रशीद, बाबू मधुसूदन दयाल, ताराचन्द मोदी, केदार नाथ कली वाले, कैप्टन जफर आलम पूर्व चेयरमैन नगर पालिका, मुकुट लाला स्म्पादक, अम्बा प्रसाद गर्ग, लाला देवी सहाय तबले वाले, चौ. वहीदुल्ला खा, महाशय बख्तावर लाल, मुन्ना लाल जाटव, चराग दहेलवी, लाला गंगाशरण आलू वाले व उनके पूत्र महेश चन्द आलू वाले सभी स्वर्गीय हस्तियां जिन्होने हापुड़ के राजनैतिक एवं सामाजिक क्षेत्र मे योगदान दिया। हकीम हाशिम बेग एवं डा0 शब्बीर, स्व. कैलाश आजाद एवं फसीह चैधरी के अथक प्रयास से हर वर्ष शहीदों की याद में शहीद मेले का आयोजन रामलीला मैदान में किया जाता है। एक ऐसी हस्ती भी हापुड़ में जन्मी थी जिनके हिस्से में भारत वर्ष की प्रथम बन्दूक की दुकान का लाइसेन्स आया जो कि 1835 में जारी किया गया था। वह खुशनसीब हस्ती मरहूम चै. फहीमुददीन साहब थे आज भी यह फर्म इलाही बक्श एण्ड कम्पनी के नाम से लखनऊ में कार्यरत है हापुड़ निवासी चै. फहीमुददीन साहब अपने छोटे भाई चै. शर्फुददीन साहब को भी लखनऊ ले गये वहीं पर पढ़ लिखकर बन्दूक व कारतूस बनाने का काम भारत सरकार से करके जिला गाजियाबाद के नगर हापुड़ में पहली बन्दूक की दुकान का व्यापार आरम्भ किया। आज हापुड़ में पांच बन्दूक की दूकाने हैं। मूलतः नगर हापुड़ में आलू की खेती होती है तथा करोड़ों रूपये का आलू प्रति वर्ष पैदा किया जाता है। इसके अलावा नगर का कसेरठ बाजार जिसमें उत्पादित बर्तन पूरे देश में सप्लाई किया जाता है यहाँ का स्टील के बर्तनों का काम भारतवर्ष में मशहूर है। आज हापुड़ में इमारती लकड़ी का भी थोक व्यापार बड़े पैमाने पर चल रहा है। नगर हापुड़ में भारत की सबसे बड़ी अनाज को संग्रह करने की संस्था ”साइलो” नाम से है जो अमरीका के सहयोग से बनी है पूरे देश में जो अनाज खरीदा जाता है उसका भण्डारण साइलो हापुड़ में ही किया जाता है। जिसके कारण भारत के सामरिक नक्शे में हापुड़ का महत्तवपूर्ण स्थान है। अनाज के जखीरे के अलावा आलू भण्डारण के लिए कोल्ड स्टोरेज स्थापित किये गये जिनमें एक ही कोल्ड स्टोर पांच लाख बोरी की क्षमता वाला है। गुड़ और अनाज की मण्डी स्थापित की गयी जिस की वजह से हापुड़ देश भर में जाना-पहचाना जाता है। यहाँ पर चमड़ा मण्डी भी लगाई जाती है जहाँ पर दूर-दूर के व्यापारी कलकत्ता, मुम्बई से हर हफ्ते चमड़ा खरीदने आते है। |
हापुड़ का इतिहास History of Hapur
Subscribe to:
Posts (Atom)